Kavita Jha

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मां बनूंगी सास नहीं..बहु घर लाऊंगी नौकरानी नहीं

"क्या माँ, बार बार एक ही बात आप कुछ नहीं समझती, कैसे मैं इनके और  बच्चों के खाने से पहले खा सकती हूँ "
कहते हुए गुस्से में निशिता ने फोन रख दिया और झाड़ू लगाने लगी।

रोज का यही हाल था निशिता जब भी अपनी माँ को फोन करती वो सबसे पहले यही पूछती , "नास्ता किया तूने?? कुछ खाया कि नहीं।"

इन्हीं शब्दों के लिए तो यहाँ ससुराल में वो तरसती कि कभी उसकी सास जेठानी भी एक बार तो कहें पहले कुछ खा लो फिर काम करना लेकिन नहीं उन्हें तो निशिता  एक बहू नहीं नौकरानी दिखती है।

झाड़ू लगाते वक्त ये क्या साथ में पोछा भी लगाना ही पड़ेगा गिरते हुए आँसुओं को देख मुस्कुरा दी और फिर अपनी साड़ी के पल्लू से आँसूओं को पोछ मम्मी को फोन लगाया ।

"साॅरी माँ, तब फोन कट गया था,"  कहते हुए एक हाथ से फोन पकड़े और  दूसरे हाथ से झाड़ू लगाते हुए अपने कमरे से अब ड्राइंग रूम में आ गई वो।

" माँ हूँ तेरी, तुझसे ज्यादा तुझको जानती हूँ। झूठ बोलना अब तक नहीं आया तुझे, फोन कटा नहीं था तूने गुस्से में फोन पटका था। अरे निशि तूँ जब तक कुछ नहीं खाऐगी तो मैं कैसे अपनी सुगर की दवाई लूं। तूँ वहाँ अपने ससुराल में खुश रहेगी तभी मेरी तबियत ठीक रहेगी। " दयमन्ती जी निशिता की मम्मी ने कहा।

सोफे के कवर ठीक करते हुए फोन को स्पीकर मोड पर रख निशिता ने कहा, "  देखो ना माँ साढ़े ग्यारह बज रहे हैं आपका बड़का नाती अब तक सो रहा है, और आपके जमाई जी तो नास्ता करते नहीं, नहाने के बाद पूजा कर एक बार ही 3 बजे खाना खाऐंगे।मैं अभी किचन का काम कर साफ सफाई में लगी हूँ। छोटका भी बात नहीं मानता है अभी नहीं थोड़ी देर बाद करता रहता है, बस तभी गुस्सा आ गया था।"

दयमन्ती कहती है, " अच्छा अपना भूल गई, रात भर जग कर पढ़ती और जब कहीं नहीं जाना होता तो देर तक सोती। कई बार सीधा शाम को उठती, तो क्या मैं तब तक भूखी रहती। तेरे पास दूध हाॅरलिक्स या जूस कुछ रख उठाती, तूँ पी कर फिर सो जाती। तेरे जैसा ही तो तेरा बेटा करता है, रात को पढ़ता है और दिन में  सोता है तो तूँ गुस्सा क्यों होती है। देख निशि अगर तूँ कमजोर हो जाऐगी तो अपने बच्चों को कैसे संभालेगी इसलिए मेरी बात मान जल्दी से नहा कर कुछ खा ले। "

निशिता: क्या माँ फिर अभी सफाई कौन करेगा, अब तक झाड़ू भी नहीं लगा है।
दयमन्ती : अच्छा तो क्या हम काम नहीं करते थे। घर गंदा रहता था जब तूँ सो कर उठती या स्कूल काॅलेज से आती।
नहा खा कर भी घर का काम पूरा कर सकती है।
अच्छा एक बात मान मेरी अब उसके लिए मना मत करना। घर में सत्तू या हाॅरलिक्स तो है ना।
निशिता : हाँ माँ दोनों चीज है।
दयमन्ती : अच्छा! चल फिर हाथ धोकर, दो ग्लास बना।एक बेटे के लिए बना कर रख दे वो जब उठेगा पी लेगा और दूसरा मेरी बेटी के लिए। जानती हूँ जमाई जी को उनकी माँ जूस और फल दे चुकी होगी अब तक। बस तूँ सब का सोचती रहती है और खुद का ध्यान नहीं रखती।
निशिता : ठीक है माँ। आप बिलकुल सही कह रही हो। मैं अभी कुछ बनाकर पी लेती हूँ खाऊँगी तो सबके बाद ही।
पर आपने अपनी दवाई ली समय पर कुछ खाया कि नहीं।
दयमन्ती : अरे! नहीं तेरे खाने से पहले कैसे खाऊंगी बस सत्तू पी कर दवाई खा ली फिर फल खा लिए खाना तो तेरे कुछ खाने के बाद ही खाऊंगी।
दयमन्ती और निशिता हँसती हैं। फिर फोन रखते हुए निशिता कहती है, " ठीक है माँ मैं हाॅरलिक्स बना कर पी कर ही अब ये सफाई का काम पूरा करूंगी। "

क्या सारी माँ ऐसी ही होती हैं निशिता सोचते हुए अपने हाथों को धो रही है। रोज सुबह सासुमाँ भी तो अपनी दोनों बेटियों को फोन कर पूछती हैं नास्ता किया। फिर मैं जो हमेशा उनकी और सबकी सेवा में लगी रहती हूँ, क्यों नहीं कभी मुझसे पूछती कि नास्ता किया। माँ सास बनते ही बहू को बेटी क्यो नहीं बना पाती मेरी मम्मी की तरह। माँ तो भाभी का कितना ध्यान रखती थी,  भाभी के और  हम सब के उठने से पहले कितना सारा काम कर लिया करती थी। मुझसे ज्यादा भाभी का ध्यान रखती। पर मुझे मेरी माँ जैसी सास क्यों नहीं मिली। मैंने तो उन्हें हमेशा माँ की तरह माना अपनी सासू माँ को फिर वो इतना भेदभाव क्यों करती हैं।

सत्तू का गिलास बेटे के सिराने रख सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए निशिता खुद से वायदा कर रही है, मैं सास नहीं बनूंगी। भगवान ने दो बेटे दिऐ हैं बेटी ही बनाकर रखूंगी अपनी बहुओं को।

गरम हाॅरलिक्स पीते हुए बाकी बचे हुए कामों को पूरा करते मन में ठान लेती है माँ ठीक कहती है मैं खुद का ध्यान नहीं रखूंगी तो अपनी बेटिओं का कैसे ध्यान रखूंगी जो शायद 15 - 20 साल बाद तक मेरे पास आ ही
जाऐंगी।

तभी निशिता की तंद्रा भंग होती है,  "कहाँ मर गई?? जल्दी से किचन साफ कर छोटे ने पानी गिरा दिया। महारानी सुन रही है या नहीं?? या लगी है अपनी माँ से फोन पर बतियाने।" सास नीचे सीढ़ी के पास खड़ी हो निशिता को आवाज लगा रही थी।

हाॅरलिक्स जल्दी से पी, झाड़ू को किनारे रख सिर पर पल्लू रख निशिता कहती है, " एक मिनट! बस आ रही हूँ माँजी।" और मुस्कुराते हुऐ पोछा उठा चल देती है निशिता किचन में गिरे पानी को साफ करने।

" बाल्टी में पानी भर फिनाइल डाल ले, किचन बाद में साफ करना पहले कमरों में पोछा लगा कर हाॅल साफ कर अच्छे से, एक भी दाग नहीं दिखना चाहिए फर्श पर, " सास कहती है।

निशिता मंद मंद मुस्कुराती है,  मम्मी का नुस्खा ठीक है, हाॅरलिक्स पी कर ऐनर्जी मिल रही है। अपनी दोनों बेटी से मैं इस तरह काम नहीं करवाऊंगी। वो तो आॅफिस जाऐंगी तो घर में नौकरानी रख लेंगे। मैं तो अपने बेटों के लिए नौकरानी नहीं लगाऊंगी। सिर पर आँचल रखे पोछा लगाते हुए सपनों में खोई है निशिता।

बेटी हूँ, माँ हूँ पर
सास और  ऐसी
मेरी सास जैसी
मैं ना बनूंगी
मैं तो उनकी
माँ बन जाऊंगी
अपने बेटों से ज्यादा
प्यार उन पर लुटाऊंगी
नौकरानी थोड़े ना बेटियाँ
घर लाऊंगी।

निशिता की आँखों में आँसू नहीं एक खुशी की चमक जगमगा रही है कि तभी उसका  दस साल का छोटा बेटा ठंडा पानी का ग्लास उस पर डाल ताली बजाता है। नहा दिया मम्मा को..  हा हा हा ... और निशिता भी हँसती है, बहुत अच्छा किया जो तूने मुझे भिगो दिआ। अब जल्दी से यहाँ साफ कर फटाफट नहाने चली जाऊंगी।
***
स्वरचित, मौलिक
कविता झा ' काव्या कवि'

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6 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

28-Oct-2021 09:47 AM

Very nice thinking

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Khushi jha

26-Oct-2021 02:01 PM

क्या खूब

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Niraj Pandey

17-Oct-2021 08:48 PM

वाह बहुत खूब

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